Saturday, November 23, 2013

चाँद


(छायाचित्र- ओमकार कुकडे)

किसी रोज चाँद सा समझा करते थे आप को,
मेरा अपना वजूद किसी दाग सा लगता था।
पर इक रोज मैने आसमान के चाँद को देखा,
देखा कि वो कितना बेफिक्र है अपने अधूरेपन से।
और यहाँ मैं था, तुम थे,
बादलों को ओढ़ते, छुपते छुपाते,
सोचते के कही देख ना ले यह दुनिया तुम्हारी।
उस चाँद को निहारते निहारते हमने भाँपली आपकी सीनाजोरी।
और मेरा चाँद किसी तारे कि तरह टूट गया,
और मैंने दुवा भी नहीं कि।
-वि. वि. तलवनेकर 

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