(Photo from movie Masaan) |
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दशहरे का मेला लगने को था,
बड़े साल बाद अपने गलियारे में चहल थी,
रह रह के ख़याल आ रहा था,
शायद तुम भी आओगी,
और जब एक लड़की चाट के ठेले पर आ कर टकराई,
तो मैंने मुड़ कर देखा,
तुम थी. .
अचंबा नहीं हुआ।
तुमने इक दफा मेरी ओर देखा,
मेरे अंदर ही अंदर एक सरसराहट सी होने लगी थी,
तुम भी शायद सोच रही थी,
मुलाक़ात तो हो गयी, अब यहाँ से निकले कैसे?
तुम्हारी आँखों में झलकती वो हरकत आज भी कायम थी।
और ये भी दिख रहा था. .
के कितना कुछ कहने को होगा तुम्हारे पास,
पर तुम कुछ ना पूछती ..
ना मेरे बारे में,
ना मेरे घरवालों के बारे में,
तुम कुछ ना पूछती ..
ना ही उस पड़ोस के चिंकू के बारे में जिस से तुम्हे हमेशा से शिकायत रही थी,
तुमने बड़े चाव से दिए उन फूलों को कैसे बिखेर के रख दिया था उसने,
नटखट है वो, नादान है वो, आखिर बच्चा ही तो है वो!
एक ख़याल मन में दौड़ गया,
मैं हंस पड़ा।
तुमने थोड़े अचरज से देखा. .
पर तुम कुछ ना पूछती..
ना ही मेरे कामकाज के बारे में,
ना ही उन अधूरे ख्वाबों के बारे में,
ना रातों के बारे में,
ना ही यादों के बारे में. .
कितना कुछ बीत रहा था एक लम्हे में,
और में बस ताकते जा रहा था. .
और तुम खामोश!
तुम चलती बनी।
तुम्हारे लिए रास्ता कर में बाजू जा खड़ा हुआ।
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तुमने कुछ कदम बढ़ा कर पीछे मूड कर कहा ।
"कैसे बिखरे लग रहे है बाल, जरा भी जच नहीं रहे"
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मैं मन ही मन मुस्कुरा उठा,
सुबह में ही किसी ने पूछा था,
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"ऐसे बिखरे बाल क्यों रखे है?"
-वि. वि. तळवणेकर
Chan chan😊
ReplyDeleteThanks Pranali :) :)
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